सन् 1959 ई . में पं . गुलाबचन्द्र जी 'पुष्प' व्यापार हेतु नावई ( नवागढ़ ) गाँव के पास से निकले । यहाँ टीले के ऊपर विशालकाय इमली के पेड़ के नीचे बहुत सी खण्डित जैन मूर्तियों , झाड़ियों के झुरमुट एवं पत्थरों का ढेर देखा । एक ग्रामीण यहाँ नारियल फोड़ कर मनौती मांग रहा था । उससे चर्चा करने पर उसने बताया कि यह देव स्थान है । यहाँ हम अपनी समस्त विपदाओं का निराकरण नारियल फोड़ कर करते हैं । यहाँ की धूल भी यदि हम रोगी को लगा दें तो यह स्वस्थ्य हो जाता है ।
पं . पुष्पजी ने गंभीरता से निरीक्षण करके विचार किया कि यहाँ कोई अतिशयकारी प्रतिमा होनी चाहिए , जो ग्रामवासियों की श्रद्धा से उनकी इच्छा पूर्ति करती है । ग्रामवासियों को एकत्रित करके इमली का पेड़ हटाने को कहा , परंतु सभी ने मना कर दिया कि देव स्थान पर हम कुछ भी नहीं करेंगे ।
कुछ दिनों पश्चात् पुष्प जी ने कुछ साथियों के साथ इमली के पेड़ को हटाने का संकल्प किया । जिसमें उन्हें कोई बाधा नहीं आई और कुछ दिन में ही परिश्रम के फलस्वरूप टीला हटाने पर कुछ खण्डित प्रतिमाएँ प्राप्त हुई । जमीन खोदने पर कुछ सांगोपांग तथा कुछ खण्डित प्रतिमाएं पुनः प्राप्त हुई । जमीन में 10 फीट नीचे लगभग 900 वर्ष प्राचीन अतिशयफारी 4 . 75 फीट खड़गासन अरनाथ भगवान की प्रतिमा भोयरे ( भूगर्भ ) में प्राप्त हुई । भगवत् दर्शन से अभिभूत पुष्प जी ने संकल्प किया कि भगवान की पुनः प्रतिष्ठा करके इस क्षेत्र का विकास करूगा ।
क्षेत्र की वर्तमान स्थितिक्षेत्र के प्रारंभिक विकास के क्रम में प्रथम बार सन् 1960 में पं . नीरज जैन सतना के निर्देशन में प्रांतीय जैन समाज के सहयोग से भोयरे का जीर्णोद्धार किया गया । प्रतिष्ठाचार्य पं . गुलाबचन्द्र ‘ पुष्प ' एवं आंचलिक समाज के विशेष सक्रिय सहयोग से वर्ष 1985 में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं गजरथ महोत्सव के सफल आयोजन के फलस्वरूप शिखर सहित मूलनायक मंदिर , बाहुबली जिनालय एवं धर्मशाला का निर्माण कार्य संपन्न हुआ ।
ब्र , जय कुमार ' निशांत ' भैया जी के निर्देशन में क्षेत्र को नवीन स्वरूप प्रदान कराते हुये वास्तु एवं शिल्पकला के अनुरूप किये गये सौन्दर्यकरण से आज नवागढ़ क्षेत्र जन - जन की आस्था का केन्द्र बन चुका है । भक्तगण यहाँ आकर विधान , जाप्यानुष्ठान आदि करके अपनी समस्याओं का निदान पाकर भगवान अरनाथ स्वामी के प्रति समर्पित हो जाते हैं ।